ಗುರುವಾರ, ಸೆಪ್ಟೆಂಬರ್ 5, 2013

सरस्वति प्रभा रौप्य संभ्रमु

रौप्य वर्षा चरणॆ बाग्ला
राब्लॆ कॊंकणि मास पत्रिका


सुप्रभात तशीचि उज्वाडु लग्ल संभ्रमरि।
दर्प दॆकिनशि अर्थपूर्णशि
तृप्ति दित्तॊचि मातृ भाषॆचॆ
सुप्रतिष्ठ पूर्ति जात्तलॆ म्हॊणु आशैयत ॥१॥
मातृ भाषॆ सेवॆयवसर
शर्तु बांधुनु हुब्ळि गांवक
मूर्त रूपशि शॆणै माम्म राब्लॊ एकांगि।
पत्र कॊंकणि मास संचय
सूत्र विंचूनु घॆत्लॊ कन्नड (सुललित)
भर्ति सेवा सद्विचारस सरस्वति प्रभा ॥२॥
तत्त्वनिष्ठा सदा राक्तोचि
आत्मवंचनॆ कॆन्न लॆक्नशि
सत्त्वपूर्णशि बरलॆ सेवा चल्त निरंतर।
पथ्य जाव्चॆलॆ ललित साहित्य
नित्य नूतन कला संस्कृति
अर्थु जाव्वशि हॊंव्त पत्रिकॆ धर महिन्यांत॥३॥
वर्ण पूरित चित्रवार्ता
पूर्ण माहिति बर्‍त मासिक
मण्णॆ चांगस सग्ळॆ तर्‍कीन विविधता मेकता।
काण्यो, कविता गुच्छा संग्रह
ताण्त मंतिना पत्र पळुचॆक
वर्णनातीत विषि हूरण हॊंव्क होड्वणनि॥४॥
वीसु वर्षकु वीस पुस्तक
भास कॊंकणि माळ गुंतुन
दोष दॆक्नशि बांय्र हाड्ला आत्म संतोष
घोष वाक्य नम्र सेवा/ईश सेवा अप्लॆ भासॆ
द्यास दवरन पुडे वाव्रुन राब्ल सुरेशशि।
जात पातशि खंचे रिग्नशि
हेतु बरॆपण भास परमॊळु
ख्यात जव्वशि कला संस्कृति भास कॊंकणिचि॥४॥
सेतु बंधन तश्शि संस्कृति
हातु कूड्सुनु खांद दिल्लॆरि
घात जाय्नरॆ आम्मि कॊंकणि भास संस्कृतिक।
रजत संभ्रम कॊंक्णि प्रभॆचि
वजन राक्या सग्ळॆ बांव्डॆनॊ
सुजन मन तुमि सदा शयनी पुडे सरकया
विजय कॊंकणि मातृ वाव्रक
मॆजुन सेवा दूर धांव्डॆया
सुजय दिशनमि नदर घाल्ता भास वाड्तलशि॥५॥
जै कॊंकणि
- नागेश अण्वेकर, कारवार

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